क्या आपको पता है बदरीनाथ मंदिर का नाम बदरीनाथ कैसे पड़ा?

बद्रीनाथ धाम, जिसे बद्रीनारायण के नाम से भी जाना जाता है, भारत के उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में हिमालय की गोद में अलकनंदा नदी के तट पर बसा हुआ हिंदू धर्म का एक प्राचीन मंदिर है, जो भगवान विष्णु को समर्पित है। यहां पर भगवान विष्णु के एक रूप बद्रीनारायण की पूजा होती है। भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों में शामिल यह मंदिर चार धामों में से एक है।

बद्रीनाथ धाम कहां स्थित है ?

बदरीनाथ धाम भारत के उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है, जो हिमालय की गोद में अलकनंदा नदी के तट पर बसा हुआ है, जिसमें भगवान विष्णु के एक रूप “बद्रीनारायण” की पूजा होती है।

बदरीनाथ मंदिर का नाम बदरीनाथ कैसे पड़ा इसकी एक रोचक कथा है

ये तो सभी जानते हैं कि बदरीनाथ मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में अलकंदा नदी के तट पर स्थित एक हिंदू मंदिर है, ये भगवान विष्णु को समर्पित है। ये मंदिर हिंदू धर्म के चार धामों में से एक है। ये एक प्राचीन मंदिर है और कहा जाता है कि निर्माण आदि गुरु शंकराचार्य ने 8वीं सदी में कराया था, लेकिन बहुत कम लोगों को ही ये पता है कि मंदिर का नाम बदरीनाथ मंदिर कैसे पड़ा। बदरीनाथ मंदिर का नाम बदरीनाथ कैसे पड़ा, इसके इसके पीछे एक रोचक कथा है।

कहा जाता है कि एक बार देवी लक्ष्मी, भगवान विष्णु से रूठकर मायके चले गयीं थीं। तब भगवान विष्णु ने देवी लक्ष्मी को मनाने के लिए तपस्या की। जब देवी लक्ष्मी की नाराजगी दूर हुई। तब देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु को ढूंढते हुए उस जगह पहुंच गई, जहां भगवान विष्णु तपस्या कर रहे थे। उस वक्त उस जगह पर बदरी(बेर) का वन था। बेर के पेड़ में बैठकर भगवान विष्णु ने तपस्या की थी इसलिए लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु को ‘बदरीनाथ’ नाम दिया था।

क्या है मंदिर की मान्यताएं?

बदरीनाथ मंदिर की पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक जब गंगा नदी धरती पर अवतरित हो रही थी, तब गंगा नदी 12 धाराओ में बट गयी। इसलिए इस जगह पर मौजूद धारा अलकनंदा के नाम से प्रसिद्ध हुई और इस जगह को भगवान विष्णु ने अपना निवास स्थान बनाया और ये जगह बाद में बदरीनाथ कहलाया।

एक मान्यता ये भी है कि प्राचीन काल मे ये स्थान बेरो के पेड़ो से भरा हुआ करता था। इसलिए इस जगह का नाम बदरी वन पड़ गया और ये भी कहा जाता है की इसी गुफा में ”वेदव्यास” ने महाभारत लिखी थी। पांडवों के स्वर्ग जाने से पहले ये जगह उनका अंतिम पड़ाव था, जहां वे रुके थे।

बद्रीनाथ मंदिर के कपाट कब खुलते और बंद होते हैं ?

इस मंदिर के कपाट मई के अक्षय तृतीया के दिन महीने में खोल दिए जाते हैं और नवंबर के महीने में दीपावली के दो दिन बाद भाई दूज के दिन बंद कर दिए जाते हैं।

बद्रीनाथ मंदिर में दर्शन करने का समय –

भगवान विष्णु का यह मंदिर सप्ताह के सातों दिनों तक खुला रहता है, जिसमें दर्शन करने का समय नियमित रूप से सुबह 6 बजे से रात 8 बजे तक रहता है।

उत्तराखंड की इस धरती को भारतीय संतों और महात्माओं ने देवताओं और प्रकृति का मिलन स्थान माना है। कहा जाता है कि आदि युग में नारायण ने, त्रेतायुग में भगवान राम ने, द्वापर युग में वेदव्यास ने तथा कलयुग में आदि शंकराचार्य ने बद्रीनाथ में धर्म और संस्कृति के सूत्र पिरोए।

 

 

 

 

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