बसंत पंचमी पर्व कब और कैसे आरंभ हुआ

बसंत पंचमी का पर्व आप सभी को मंगलमय हो।

बसंत ऋतु के स्वागत के लिए बसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता हैं। यह त्योहार हर वर्ष माघ महीने की शुल्क पंचमी को मनाया जाता है। इसमें भगवान विष्णु, माता सरस्वती की विशेष पूजा की जाती है।

पूरे वर्ष को 6 ऋतुओं मे बांटा गया है, जिसमे बसंत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु, वर्षा ऋतु, शरद ऋतु, हेमंत ऋतु और शिशिर ऋतु शामिल है। इन सभी ऋतुओं में बसंत को सभी ऋतुओं का राजा माना जाता है, इसी कारण इसे बसंत पंचमी कहा जाता हैं।
इस ऋतु में खेतों में फसलें लहलहा उठती है और फूल खिलने लगते हैं अर्थात धरती पर फसल लहलहाती हैं।

मान्यता है कि इस दिन माता सरस्वती का जन्म हुआ था, इसलिए बसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती की पूजा होती है। माता सरस्वती को विद्या तथा बुद्धि की देवी कहते है। इस दिन लोग पीले रंग के कपड़े पहन कर पीले फूलों से माता सरस्वती की पूजा करते है। लोग पतंग उड़ाते है और मीठे पीले रंग के चावल खाते है।

इस त्योहार के पीछे एक पौराणिक कथा है –
सर्वप्रथम श्री कृष्ण और ब्रह्मा जी ने देवी सरस्वती की पूजा की थी। देवी सरस्वती ने जब श्री कृष्ण को देखा तो वो उनका रूप देख कर मोहित हो गई और पति के रूप मे पाने के लिए इच्छा करने लगी। इस बात का भगवान श्री कृष्ण को पता लगने पर उन्होंने देवी सरस्वती से कहा कि वे तो राधा रानी के प्रति समर्पित है, परंतु माता सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए भगवान श्री कृष्ण माता सरस्वती को वरदान देते है कि प्रत्येक विद्या की इच्छा रखने वालो को माघ महीने की शुल्क पंचमी को तुम्हारा पूजन करना होगा। यह वरदान देने के बाद सर्वप्रथम ही भगवान श्री कृष्ण ने देवी की पूजा की।
इंसानों के साथ साथ पशु पक्षियों में नई चेतना उत्पन्न होती है, यदि हिंदू मान्यताओं के अनुसार देखा जाए तो इस दिन देवी सरस्वती का जन्म हुआ था, यही कारण है कि इस त्योहार पर पवित्र नदियों में लोग स्नान, पूजा आदि करते है
यह त्योहार बच्चों के लिए भी काफी शुभ माना जाता है। 6 माह पूरे कर चुके बच्चों के अन्न का पहला निवाला भी इसी दिन खिलाया जाता है । अन्नप्राशन के लिए यह दिन अत्यंत शुभ होता हैं।

मौसम में ठण्ड काम होने है. हालाँकि  माघ माह में उत्तरायणी के बाद से ही मौसम बदलने की शुरुआत हो जाती है, और अब लगभग एक महीने बाद यह बदवाल स्पष्ट महसूस होने लगता है और अपने आस-पास देख भी पा रहे हैं। फूलों, फलों के पेड़ों, फ़सलों में नए फूलों, कलियों का खिलना बसंत ऋतू के आगमन का संकेत है।

पूरे देश भर के साथ -साथ उत्तराखंड में भी इस पर्व को मनाने की एक विशेष परम्परा है. विद्या की देवी माँ सरस्वती की पूजा अर्चना, नये कार्य की शुरुआत, शिक्षा के शुभारम्भ, अन्नप्राशन, नाक-कान छिदवाने, जौं पूजने, पीले वस्त्रों को धारण करने के साथ-साथ घुघुतिया त्योहार के समापन के दिन के रूप में भी यह त्योहार देखा जाता है. एक मान्यता के अनुसार घुघुतिया त्योहार से लेकर अब तक रिश्तेदारों, सगे संबंधियों को बाँटने के लिए पकवान घुघुतिया से लेकर बसन्त पंचमी तक बनाए जा सकते हैं. कोई रिश्तेदार छूट गए हों तो इस दिन अन्य पकवानों के साथ घुघुतिया पकवान भी बनाये जा सकते हैं।

कुमाऊँ क्षेत्र में बसन्त पंचमी को बैठकी होली के आरम्भ के रूप में भी देखा जाता है. इस दिन से लेकर फ़ागुन मास की एकादशी तक बैठकी होली का चलन देखने को मिलता है।

बसन्त पंचमी को पुराणों में ऋषि पंचमी भी कहा जाता है. इस दिन को विद्या की देवी माँ सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में मनाने की परम्परा भारत के कई हिस्सों में सदियों से चली आ रही है. एक कहानी के अनुसार माँ सरस्वती को भगवान कृष्ण द्वारा इस दिन पूजे जाने का वरदान प्राप्त हुआ जो परम्परा के रूप में भारतीय संस्कृति में आज भी विशेष महत्व रखता है. माँ सरस्वती से ज्ञान, विद्या की कामना के रूप में, नई शुरुवाद के रूप में पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है।

पुनः उत्तरा पीडिया परिवार की ओर से आप सबको हार्दिक मंगलकामनाएं।

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