“मैं” और “एक और मैं”

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मेरा मानना था जिंदगी बहुत छोटी है, उसका ख्याल था कि बहुत लम्बी।

मेरा मानना था कि जितना कम जानोगे उतना खुश रहोगे, उसकी कोशिश अधिकतर चीजों को जानने की रहती थी।

मुझे जिंदगी से ज्यादा पाने के चाह नहीं थी, जबकि उसे हर बार अपने आप को साबित करना होता था।

मुझे ज्यादातर अकेले रहकर खुद से मिलने में दिलचस्पी थी, उसे भीड़ में रह कर लोगो से मिलना पसंद था।

मैं कर के जताने में कोई दिलचस्पी नहीं रखता था, उसे जताना भी होता था।

मैं कहता यहीं थम लू, उसका कहना था शाम ढलने से पहले थोडा और चल लूँ

मुझे तालाब पसंद थे, और उसे नदियाँ

मेरी कोशिश खुद में बेहतर तलाशने की होती थी, वो खुद से बेहतर ढूँढता था।

लेकिन ऐसा शुरू से नहीं था, हां ऐसे मौके, अब बहुत कम हो गए जब हम दोनों की नजरिया और इच्छाएं मिलती हो, पर फिर भी रहते आये है हमेशा एक दुसरे के साथ एक अरसे से… एक “मैं” और एक मेरे अन्दर का “एक और मैं“।


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