बच्चों में संस्कार का बीज अवश्य डालें

कवि रहीम कहते हैं – जो रहीम उत्तम प्रकृति का करि सके कुसंग। चंदन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग।

कवि इन शब्दों में बता रहा है कि चंदन की लकड़ी की यही विशेषता है कि उसमें सुगंध की ऐसी विशेषता है कि वह किसी दूसरे गंध से प्रभावित नहीं हो सकती। इसी तरह जिन बच्चों को परिवार से, समाज से और वातावरण से सुदृढ़ संस्कार मिल जाते हैं वह कुसंगति से प्रभावित नहीं हो सकते। आजकल के मां-बाप भागदौड़ भरे जीवन में बिना सोचे समझे अपने बच्चों को उनकी प्रतिभा और क्षमता का सही आकलन किए बिना ही उन्हें सीए, डॉक्टर बनाने के सपने संजोए रहते हैं। अपनी उम्मीदों का बोझ बच्चों पर डालने से उनका सामाजिक विकास रुक जाता है, और वह कुंठा ग्रस्त बन जाते हैं।

संस्कारित बालक पढ़ लिखकर ऊंचे पदों पर तो चले जाते हैं और पैसे के लोभ व विदेशों में जाकर खूब कमाते हैं, परंतु वह भी आकर्षण में फंसकर वही के बन जाते हैं और अपनी जिंदगी वही बिताने में विश्वास रखते हैं। उनके जीवन में मां बाप, भाई बहन, रिश्तेदारों का कोई महत्व नहीं रह जाता। वह कभी देश मे आएंगे तो पूछेंगे, पापा होली क्या होती है दिवाली क्या होती है? भारतीय धर्म और संस्कृति के विरुद्ध संयम, सदाचार हीन पाश्चात्य संस्कृति में दीक्षित होकर वह भूत जैसा जीवन बिताने में ही आनंद का अनुभव करने लगते है। अतः प्रत्येक मां-बाप, अभिभावक का परम कर्तव्य है कि वह अपने बच्चों का मनुष्य जीवन सफल बनाने हेतु उन्हें संस्कारित भी करें।

इस संदर्भ में कुछ सुझाव नीचे दिए जा रहे हैं:

  • बच्चों की सबसे पहली गुरु उनकी मां होती है। अतः संस्कारित करने का प्रथम कर्तव्य मां का ही है। औरंगजेब के दरबार में एक साधारण कर्मचारी के बेटे संभाजी के बेटे शिवाजी को भारतीय इतिहास में अजर अमर वीर वीर योद्धा बनाने का श्रेय सिर्फ उनकी माता जीजाबाई का ही है। अतः मां का सशक्त सुशिक्षित और सुसंस्कृत होना परम आवश्यक है, इसी कारण मां का दर्जा पिता से 100 गुना अधिक बताया गया है
  • समय परिवर्तनशील होता है। आज से 50 साल पूर्व बच्चे तो क्या बड़े भी अपने मां-बाप के निर्देशों का पालन करते थे, परंतु अब ऐसा नहीं हो सकता। बच्चे कोरा उपदेश नहीं मान सकते, पहले मां-बाप स्वयं सही राह पर चलें तो यह बच्चे उस राह को पसंद कर सकते हैं।
  • बच्चों का जब बोलने का समय आ जाए तो उन्हें गृह कार्य के साथ स्वाध्याय करना भी सिखाना चाहिए। चंदामामा, चंपक जैसी पत्र-पत्रिकाओं के साथ उन्हें कहानियां भी सुनानी चाहिए। समय-समय पर उन्हें पौराणिक कहानियां, प्रेरक कहानियां, उपयोगी कहानियां, कर्मफल, सत्संग पढ़ने को प्रोत्साहित करना चाहिए।
  • आज के समय के अनुसार हम बच्चों को टीवी और स्मार्टफोन से रोक तो नहीं सकते, परंतु उन्हें समय से पूर्व खिलौनों के रूप में प्रयोग ना करने दें और उनके प्रयोग की जानकारी भी तुरंत बताएं। समझ आने के बाद उन्हें टीवी, मोबाइल इंटरनेट और फेसबुक के प्रयोग की जानकारी देते हुए उनके उपयोग और दुरुपयोग दोनों की जानकारी दें।
  • पूजा करते समय, मंदिर जाते समय, दान पुण्य करते समय और सत्संग भजन में भाग लेते समय छोटे बच्चों को हमेशा साथ रखना चाहिए ताकि वे धार्मिक संस्कारों को देख सुन सके और शिष्टाचार से परिचित हो सकें।
  • घर में कैसे रहे, छोटे बच्चों के साथ कैसे व्यवहार करें रिश्तेदारों के घर जाएं तो किन किन बातों का ध्यान रखें, यह सब एक सुसंस्कृत मां अपने बच्चे को आसानी से सिखा सकती है।
  • बहुत छोटी अवस्था में बच्चे को ना तो स्कूल भेजना चाहिए और ना ही उसे नौकरों के भरोसे छोड़ना चाहिए, ऐसे शिशु को मां के प्यार दुलार और संरक्षण की सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है।
  • छोटी अवस्था में ही उन्हें गुटका, तंबाकू, शराब के अवगुणों से परिचित करा देना सबसे ज्यादा जरूरी है। बच्चों को नाचने का प्रशिक्षण ना दिलाकर उन्हें संगीत सिखाना चाहिए बांसुरी बजाना, तबला बजाना, ढोलक बजाना, गाना गाना घर में बच्चों को आ गया वह घर स्वर्ग बन जाता है। प्रातः या रात को संगीत का आनंद लेने वाले घरों में सहज भी कलयुग का प्रवेश नहीं होता है।

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