उत्तराखंड स्थित अटूट श्रद्धा का केंद्र श्री हेमकुंड साहिब की यात्रा

उत्तराखंड स्थित सिखों और हिंदुओं की अटूट श्रद्धा का केंद्र श्री हेमकुंड साहिब एक विश्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। समुद्र तल से लगभग 15,200 फुट (4632 मीटर) की ऊँचाई पर एक झील के किनारे सात पहाड़ों के मध्य स्थित है। यह ऋषिकेश-बद्रीनाथ मार्ग में गोविन्दघाट से पैदल चल कर पहुँचा जा सकता है।

बद्रीनाथ से लगभग 20 किमी0 पूर्व गोविन्दघाट नाम का स्थान है। इसके आगे चार कि.मी. दूरी पर पुलना गाँव है, पुलना से 6 किमी0 चढाई चढ़ कर भूडार गाँव और चार किमी0 बाद घांघरिया गाँव है।  जो समुद्र तल से लगभग 3,048 मी0 ऊंचाई पर स्थित है। ऊपर उत्तर दिशा की ओर लगातार चढाई लिए हुए मार्ग है। दूर हरे भरे पर्वतों के बीच, लक्ष्मण गंगा नदी बहती दिखाई देती है। जैसे-जैसे ऊंचाई की ओर बढ़ते हैं, तो पेड़ पौधों की संख्या भी धीरे धीरे कम होती जाती हैं, और छोटी झाड़ियां दिखने लगतीं हैं। फिर और ऊंचाई पर पहुँचने पर दिखती है मखमली घास और साथ में हैं कई असंख्य फूलों से लक़दक़ नज़ारे (हालाकि ये इस पर भी निर्भर करता है आप किस मौसम में यहाँ आ रहें हैं)।

घांघरिया से ही एक अलग मार्ग फूलों की घाटी के लिए है, जो यहाँ से लगभग 3 किलोमीटर है। ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक स्माइथ कामेट शिखर के सफल आरोहण के बाद गमशाली गाँव के आगे रास्ता भटक गए, और फूलों की घाटी पहुंच गए। 1937 में यहाँ दुबारा आकर, उन्होंने यहाँ की दुर्लभ तीन सौ से अधिक पुष्प प्रजातियों पर पुस्तक भी लिखी।

इससे पहले 1930 से संत सोहन सिंह सप्तश्रृंग के सरोवर की खोज में, अपने साथियों के साथ बद्रीनाथ के दुर्गम इलाकों में भटकते रहे थे, तब पांडुकेश्वर में ग्रामीणों से उन्हें ऊंचाई पर स्थित हिमानी झील के बारे में जानकारी मिली। सिखों का विश्वास था कि उनके गुरु गोविन्द सिंह ने पूर्व जन्म में इसी झील स्थल में महाकाल की तपस्या की थी जिसके समीप सप्त श्रृंग या सात शिखर हैं।

1936 में संत सोहन सिंह ने अपने भाई वीर सिंह के सहयोग व सिख समुदाय के जोखिम भरे प्रबल प्रयासों से लोकपाल दंड पुष्करणी में झील के किनारे गुरु गोविन्द सिंह की तपस्या स्मृति के रूप में गुरूद्वारे की स्थापना की थी।

स्कन्द तथा नारदीय पुराण में उल्लेख है कि, लोकपाल तीर्थ की स्थापना स्वयं श्री हरि ने अपने दंड से की थी।  रम्यगिरि पर्वत को सप्त ऋषियों का आवास कहा जाता था। रम्य गिरि पर्वत के आठ श्रृंग थे, जिसके एक श्रृंग को भगवान श्री हरि ने पेय जल प्राप्ति के लिए अपने दंड से खंडित किया तभी से यह पर्वत श्रृंखला सप्तश्रृंग के नाम से जानी गया। यहाँ दुर्लभ पुष्प ब्रह्मकमल भी हैं और मोनाल पक्षी भी।

दंडपुष्कर्णी या लोकपाल में गंधर्व सपत्नीक जल विहार करते थे। इस स्थल में जप तप व दान करने के साथ ही ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी को विधिवत स्नान करने का विशेष महत्व है। जनश्रुति है कि मेघनाथ का वध करने के बाद, लक्ष्मण ने मानसिक शांति के लिए दंडपुष्कर्णी तीर्थ में तप किया था। इसी कारण दंडपुष्कर्णी को लक्ष्मण झील, तथा यहाँ से प्रवाहित सरिता को लक्ष्मण गंगा के नाम से जाना गया। झील के कोने में लक्ष्मण का प्राचीन मंदिर है, जिसमें लक्ष्मण की मूर्ति विद्यमान है। पश्चिम दिशा से जलधारा नीचे ढलान की ओर बहते करीब 6 किमी0 नीचे पुष्पावती नदी में मिलती है जो फूलों की घाटी से आती है।

फूलों की घाटी से ऊपर जो चढाई शुरू होती है, उसमें धीमे-धीमे चलते हुए फूलों की मादक गंध से थकान का अहसास नहीं होता। फूलों की घाटी की सैर और बुग्याल पार करने के बाद चौदह हजार फ़ीट की ऊंचाई तक हिमनद पसरे हैं। फिर आती हैं एक हज़ार चौसठ सीढ़ियां, जिनके खत्म होते सामने है हेमकुंड लोकपाल। सुबह सूरज की पहली किरण के साथ पंद्रह हज़ार दो सौ फ़ीट की ऊंचाई पर डेढ़ कि.मी. परिधि में पसरी यहाँ की झील के दर्शन जून माह से अक्टूबर माह किए जा सकते हैं।

इसके अतिरिक्त उत्तराखंड स्थित दो अन्य सिक्खों की धार्मिक आस्था से जुड़े तो अन्य ऐतिहासिक स्थान नानकमत्ता साहिब रुद्रपुर जिले में और श्री रीठा साहिब, चंपावत जिले में स्थित हैं, पूर्व में रीठा साहिब से जुड़ी जानकारी देता लेख आपको इसी website uttarapedia.com में मिल जाएगा। और जल्द ही नानकमतता की जानकारी आपके लिए ले कर आएंगे। वैसे आप इन दोनों स्थानों की जानकारी देते विडियो नीचे दिये लिंक्स द्वारा भी पा सकते हैं।

देखिये नानकमत्ता की जानकारी देते विडियो को ?

देखिये रीठा साहिब की जानकारी देते विडियो को ?

 

रीठा साहिब की जानकारी देता लेख पढ़ें ?

रीठा साहिब चंपावत : जहाँ गुरुनानक देव जी आये थे


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