उत्तराखंड जागर : सदियों पुरानी लोक परम्परा

देवता आवाहन, पुजा पद्धति

नैसर्गिक सुंदरता से भरे उत्तराखंड के अनेकों दूरस्थ गांव, भले ही इन गांवो में पहुंचने का मार्ग कितना ही दुर्गम क्यों न हो, ये गांव भले ही पर्यटन मानचित्र पर अंकित हो या न हो, परन्तु इनकी सुरम्यता अद्भुत, अद्वितीय, अविस्मरणीय और ऐसी है, जिसे कुछ शब्दों में वर्णित नहीं किया जा सकता। इन्ही ही ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी पूरी बिरादरी द्वारा समूहिक पुजा और देवता आह्वान के लिए पूजा/ हवन आदि का आयोजन किया जाता है। जिसमे अलग अलग स्थानों में रह रहे संबंधियों का सम्मिलित होना सुनिश्चित किया जाता है। माँ नंदादेवी, माँ भगवती, सहित देवी के कई रूपों की पूजा उत्तराखंड में की जाती हैं, इसके लिए चैत्र विशेष रुप में पवित्र माना जाता हैं। यह समय उत्तराखंड में देवी की पूजा के रूप में अत्यंत हर्ष उल्लास और श्रद्धा से मनाया जाता है।

जागर उत्तराखंड की पारंपरिक पूजा पद्धति हैं – जो गढ़वाल और कुमाऊँ में सदियों से मनाई जाती रही है। इस तरह पूजा/ हवन को जागर या देवता नचाना कहा जाता है, जिसमे सभी लोग पूरी निष्ठा और पवित्र भावना से सम्मिलित हो एक विशेष पारम्परिक प्रकार से अपने कुल देवी/ देवताओं का आह्वान करते हैं।

यह पारंपरिक पूजा कैसे संपन्न की जाती हैं!

इसमें, समस्त बिरादरी के सदस्य सामूहिक रूप से पूजा में सम्मिलित होते हैं। पूजा की यह अवधि 1 दिन, 3 दिन से लेकर आठ दिनों तक हो सकती है। इसके द्वारा – देवताओं का आह्वान कर – उनसे अपनी समस्याओं के निवारण हेतु प्रश्न किये जाते हैं, और सबकी कुशलता और सम्पनता हेतु प्रार्थना की जाती है।

जिनके शरीर में देवता अथवा देवी अवतार लेती हैं – उन्हें डंगरिये कहा जाता है. और देवताओं को जगाने की प्रक्रिया को जागर कहते हैं. देवताओं को जगाने के लिए प्रार्थना या आह्वान करने वाले जगरिये कहलाते हैं।

जगरिये का साथ देने के जागर से पूर्व देवता को प्रसन्न करने के लिए झोड़ा गया जाता है। डंगरिये, दम्मू (एक प्रकार का छोटा ढोल) की ताल पर, नृत्य करते हैं। इस पूजा आयोजन के अंतिम दिन, हवन और भंडारा कर, इस अनुष्ठान को संपन्न किया जाता है।

इस लेख के आरंभ में उत्तराखंड के ग्रामों का जिक्र किया था, ऐसा ही एक नाम है, उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में स्थित एक खूबसूरत गांव – रैतोली, हालांकि ये दूरस्थ तो नहीं, पर पलायन के trend से अछूता भी नहीं। उम्मीद हैं यह वीडियो ? अपने गांव – परिवार से दूर – नयी पीढ़ी को पुरानी परम्पराओं को समझने में सहयोग देगा।

 

इस दौर में जब नयी पीढ़ी संयुक्त परिवार से दूर होने लगी हैं, जिससे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाने वाली हमारी संस्कृति, कला, परंपरा के बारे में जानकारी कम होती जा रही है। भले ही किसी का विश्वास इन परम्पराओं में हो या नहीं, लेकिन सच यह है कि, समय के साथ जब हमारे किरदार, पीढ़ियाँ, तकनीक, सोच, आवश्यकताएं सब बदल जाती हैं, तब एक “संस्कृति ही हैं, जो वर्षों से हमें – हमारी जड़ों से जोड़े रखी है, और अतीत की सदियों पुरानी परम्पराओं को, नयी पीढ़ी तक लेकर जाती है।


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