रीठा साहिब चंपावत : जहाँ गुरुनानक देव जी आये थे

उत्तराखंड के चम्पावत जिले में स्थित, समुद्र तल से लगभग 7,000 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित, रीठा साहिब नामक स्थान, श्री गुरू नानक देव जी तथा उनके अभिन्न साथी मरदाना जी की ऐतिहासक याद से जुड़ा हुआ प्रसिद्द स्थान है। इस जिले की सीमांए उधम सिंह नगर तथा नैनीताल जिले से लगती है।  

रीठा साहिब सिक्खों के पवित्र धार्मिक स्थल होने के साथ ही. सिक्ख और हिन्दू धर्म की अनूठी मिसाल भी पेश करता है।

सिक्खों और हिन्दुओं की धार्मिक आस्था का केंद्र, श्री रीठा साहिब, उत्तराखण्ड के चम्पावत जिले में जिला मुख्यालय से लगभग 72 कि.मी. की दुरी पर.  ड्युरी नामक एक छोटे से  गांव में लोदिया और रतिया नदी के संगम पर समुद्री तल से लगभग 7,000 (2,084 metres (6,837 ft) above sea level,)  फुट की ऊच्चाई स्थित है। 

यहाँ के प्राकर्तिक दृश्य देख के आप ये कल्पना कर सकते हैं मानो प्रकृति ने अपने खूबसूरत रंग भर कर एक खूबसूरत लैंडस्केप बनाया हो.। नदी और गाँव की उपजाऊ भूमि से लगा हुआ धार्मिक आस्था का केंद्र श्री रीठा साहिब। 

इस स्थान के बारे में यह मान्यता है कि सन् 1501 में सिख धर्म के संस्थापक श्री गुरु नानक देव यहाँ आये थे।

गुरुद्वारा रीठा साहिब, चंपावत उत्तराखंड

भारतीय धर्मों में सिख धर्म का अपना एक पवित्र एवं अनुपम स्थान है। सिखों के प्रथम गुरु, गुरुनानक देव सिख धर्म के प्रवर्तक हैं। गुरुनानक देव का कालखंड 1469-1539 ई. रहा। इनके पिता का नाम मेहता कालूचंद खत्री तथा माता का नाम तृप्ता देवी था। इनका जन्म रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी नामक गाँव में कार्तिकी पूर्णिमा को एक खत्रीकुल में हुआ था। तलवंडी पाकिस्तान में पंजाब प्रान्त का एक शहर है। उन्होंने अपने समय के भारतीय समाज में व्याप्त कुप्रथाओं, अंधविश्वासों, जर्जर रूढ़ियों और पाखण्डों को दूर करते हुए जन-साधारण को धर्म के ठेकेदारों, पण्डों, पीरों आदि के चंगुल से मुक्त किया। उन्होंने प्रेम, सेवा, परिश्रम, परोपकार और भाई-चारे की दृढ़ नीव पर सिख धर्म की स्थापना की।

यह जगह यहाँ पाए जाने वाले एक खास तरह के मीठे रीठा (एक कसेला फल होता है) के पेड़ों के लिए भी प्रसिद्ध है।

यहाँ की छोटी सी बाजार में स्थित कुछ दुकाने में आपको दैनिक उपयोग से संबन्धित वस्तुएँ उपलप्ध हो जाती हैं, और यहाँ पंजाब & सिंध बैंक की एक शाखा है। गुरूद्वारे के एंट्रेंस पर, एंट्रेंस से लगा हुआ ही पार्किंग स्पेस है।

यहां तीर्थयात्रियों के लिए  आवास, भोजन आदि सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं। इस तीर्थ स्थल में तीर्थयात्रियों के ठहरने के लिए करीब दो सौ कमरे और सराय हॉल है। आपने गुरूद्वारे में रात्रि विश्राम करना हो तो यहाँ आपको एंट्री करनी होती है और पहचान सम्बन्धी डाक्यूमेंट्स जैसे DL, वोटर id कार्ड, aadhar, आदि दिखाने होते हैं,  यहाँ dormitory, डबल एंड फोर bedded फॅमिली room आदि सामान्य दरों पर उपलब्ध हैं। 

चारो और पहाड़ियों के बीचो बीच बसे इस स्थान में पीछे चलती गुरुबानी की मधुर आवाज और मधुर संगीत की आवाज सुन आपको अलग ही आनंद और शांति की अनुभूति होती है। 

यही लगे एक रीठे के पेड के नीचे गुरुनानक देव जी ने अपने शिष्यों के साथ विश्राम किया था। एक रीठा का वृक्ष (मूल नहीं है) अभी भी यहां है और तीर्थयात्रियों को मीठे रीठे का प्रसाद दिया जाता है । गुरुद्वारा  से लगभग दस किलोमीटर की दूरी पर, एक बगीचा जिसे नानक बागीचा कहा जाता है, वहां मीठे  रीठे के पेड़ उगते हैं और उनके फल एकत्र कर यहाँ उन्हें गुरुद्वारा के प्रसाद स्वरुप दिया जाता है।

गुरुनानक जी ने,अपने समय के भारतीय समाज में व्याप्त कुप्रथाओं, अंधविश्वासों, जर्जर रूढ़ियों और पाखण्डों को दूर करते हुए जन-साधारण को धर्म के ठेकेदारों, पण्डों, पीरों आदि के चंगुल से मुक्त किया।

एक कथा के अनुसार – गुरुनानक देव – अपने शिष्य “बाला” और “मरदाना” के साथ रीठा साहिब आए थे | इस दौरान गुरु नानक देव जी की उनकी मुलाकात सिद्ध मंडली के महंत “गुरु गोरखनाथ” के चेले “ढ़ेरनाथ” के साथ हुई | इस मुलाकत के बाद दोनों सिद्ध प्राप्त गुरु “गुरु नानक” और “ढ़ेरनाथ बाबा” आपस में संवाद कर रहे थे | दोनों गुरुओं के इस संवाद के दौरान मरदाना को भूख लगी और उन्होंने गुरु नानक से भूख मिटाने के लिए कुछ मांगा। तभी गुरु नानक देव जी ने पास में खड़े रीठा के पेड़ से फल तोड़ कर खाने को कहा , लेकिन रीठा का फल आम तौर पर स्वाद में कड़वा होता हैं , लेकिन जो रीठा का फल गुरु नानक देव जी ने भाई मरदाना जी को खाने के लिए दिया था वो कड़वा “रीठा फल” गुरु नानक देव के चमत्कार से से मीठा और स्वादिष्ट हो गया। जिसके बाद इस धार्मिक स्थल का नाम इस फल के कारण “रीठा साहिब” पड़ गया ।

गुरुद्वारे का मुख्य भवन, में सामने रखा धर्मग्रंथ श्री गुरुग्रंथ साहिब में सभी Devotee अपनी श्रद्धा प्रकट कर निरंतर चलने वाली मधुर गुरुवाणी चलती हैं। विश्व भर से भक्त मन मे विश्वास और आस लिए आते हैं गुरुनानक जी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। नव विवाहित जोड़े भी यहाँ नव जीवन शुरू करने से पहले कृपा प्राप्ति की आस में यहाँ आते हैं। गुरुद्वारा में आपको गुरुवाणी की मधुर आवाज आपको स्थिर कर देती है।

बैसाखी पूर्णिमा के अवसर पर यहाँ  विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।

वहीं रीठा साहिब आने वाले श्रद्धालुओं का यहां की प्राकृतिक सुंदरता मन मोह लेती है. जिसके चलते हर साल लाखों की संख्या में देश विदेश से हर धर्म के श्रद्धालु अपने वाहनों से यहां आते है और रीठा साहिब में मत्था टेक कर मन्नते मांगते है।

यहाँ कैसे पहुचें!

गुरुद्वारा रीठा साहिब लोहाघाट से 64 किमी. की दूरी पर है। यहाँ से नज़दीक रेलवे स्टेशन, टनकपुर रेलवे स्टेशन है जो यहाँ से 142 किमी दूर पर स्थित है टनकपुर रेलवे स्टेशन से मीठा रीठा साहेब तक टैक्सी और बस उपलब्ध हो जाती  हैं। 

काठगोदाम रेलवे स्टेशन से 160 किमी की दूरी पर स्थित है. यहाँ रोड द्वारा दो अलग अलग रूट से पहुँचा जा सकता है-

1 – टनकपुर—> चंपावत—->लोहाघाट —->रीठा साहिब

2- हल्द्वानी—->देवीधुरा—–>रीठा साहिब

आशा है आपको रीठा साहिब से जुड़ी जानकारी पसंद आयी होगी। शीघ्र ही उत्तराखंड स्थित सिक्खों के एक और धर्म स्थल नानकमतता से जुड़ी जानकारी आपके लिए लाएँगे।

रीठा साहिब गुरुद्वारा दर्शन के लिए देखे यह विडियो। 

 

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