नींद अब आती नहीं (कविता)

दिल बहल जाता था तब, कागज के खिलौने से भी,
मखमली बिस्तर में भी नींद अब आती नहीं
ख़्वाहिश पूरी हो जाती थी कभी, बारिश के आ जाने से भी,
बहता समुंदर भी अब इस दिल को बहला पाता नहीं
धूल की गुबार में नहा के, माथे में आती थी ना एक भी शिकन,
अब हल्की हवा भी इस दिल को भाती नहीं

बदल गया जमाना, या बदला नजरिया,
बदल गयी हवा, या बदल गयी फितरत,
हालात बदले हैं या, हालात ने बदल दिया है।

कुछ इस तरह से कर लिया है खुद को कैद,
आंखे भारी तो हैं, पर बंद होना चाहती नहीं।
मखमली बिस्तर में भी, नींद अब आती नहीं


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