जानिए उस मंदिर के बारे में जहाँ हनुमान जी ने संजीवनी लाते हुए अपना पैर रखा था

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रामायण की कथा तो आप सभी ने सुनी होगी और यह भी सुना होगा कि जब भगवान राम व रावण का भीषण युद्ध चल रहा था तब हनुमान जी संजीवनी पर्वत उठाकर लाये थे। उस समय उन्होंने अपना दाया पैर एक पहाड़ी पर रखा था जहाँ आज भगवान हनुमान का मंदिर  है।

यह मंदिर कही और नही बल्कि हिमाचल प्रदेश में स्थित कसौली नामक जगह पर है। कसौली चंडीगढ़ से करीब 70 किलोमीटर दूर है जहाँ बस या टैक्सी की सहायता से पहुंचा जा सकता है। यहाँ से यह मंदिर करीब 4 किलोमीटर दूर है जिसे आप पैदल चलकर या फिर टैक्सी की सहायता से पहुँच सकते है। इस मंदिर का नाम श्री संजीवनी हनुमान मंदिर है।

श्री संजीवनी हनुमान मंदिर का इतिहास

रामायण काल के समय जब भगवान राम व रावण के बीच भीषण युद्ध चल रहा था तब मेघनाथ के बाण से लक्ष्मण मुर्छित हो गये थे। तब वैद्य ने उन्हें हिमालय पर्वत पर स्थित संजीवनी बूटी देने की सलाह दी थी। इस काम के लिए हनुमान जी को भेजा गया था जो उड़ सकते थे।

हिमालय पहुंचकर हनुमान जी संजीवनी बूटी को पहचान नही पाए तो उन्होंने अपना विशाल रूप लेकर उस पूरे संजीवनी पर्वत को ही उठा लिया था। उस पर्वत को वे वापस लेकर आ रहे थे। इसी बीच उन्होंने हिमालय के ऊपर से उड़ते हुए कसौली के इस पर्वत पर अपना दाया पैर रखा था।

आज वह पर्वत हनुमान जी के पैर के आकर में उस जगह स्थित है। इसी के साथ उस पहाड़ी पर हनुमान जी को समर्पित एक मंदिर बनाया गया जिसे पूजने लोग आज दूर-दूर से आते है।

मंदिर की स्थिति

यह मंदिर पूरी तरह से भारतीय वायु सेना के अधिकार क्षेत्र में आता है। इसलिये यहाँ सुरक्षा के सारे मापदंडो से गुजर कर ही आपको जाने की अनुमति मिलेगी। यह एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित है जहाँ पर पहुचने के लिए आपको कई सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती है।

सीढ़ियाँ चढ़ते समय आपको बीच में रामलला व हनुमान के मधुर भजन सुनने को मिलेंगे। इसी के साथ आपको रास्ते में बहुत ही प्यारे व प्रेरणादायक अनमोल वचन भी पढ़ने को मिलेंगे। मंदिर पहाड़ी पर स्थित होने के कारण आपको बीच-बीच में वादियों का इतना सुंदर नजारा देखने को मिलेगा कि यह यात्रा आपके लिए यादगार बन जाएगी। साथ ही मंदिर में प्रवेश करते समय व सबसे ऊपर आपको खाने-पीने के लिए दुकान भी मिल जाएगी जहाँ से आप चाय पानी या खाना खा सकते है।

सबसे ऊपर पहुंचकर आप हनुमान जी के दर्शन कर पाएंगे लेकिन ध्यान रहे यहाँ आपको बहुत बंदर भी देखने को मिलेंगे। इस जगह को मंकी पॉइंट भी कहा जाता है।

मंकी पॉइंट

यह सबसे ऊपर मंदिर के साथ ही स्थित है। जहाँ पर भगवान हनुमान के ही रूप में बहुत सारे बंदर रहते है इसलिये इसे मंकी पॉइंट भी कहा जाता है। यहाँ आने वाले बहुत से लोग इस जगह को मंकी पॉइंट के नाम से भी जानते है व इसी नाम से वे इसे देखने आते है। यहाँ आने के बाद उन्हें एहसास होता है कि वे कितनी महत्त्वपूर्ण जगह पर आये है।

मंकी पॉइंट से मंदिर के आसपास का नजारा बहुत सुंदर व भव्य है यह चोटी कसौली की सबसे ऊँची चोटी है इसलिये यहाँ से आप पूरे शहर का नजारा देख सकते है। मंकी पॉइंट से आप चंडीगढ़, शिमला व हिमालय की चोटियों को देख सकते है जो अपने आप में एक अद्भुत नजारा पेश करते है।

यहाँ पहुंचकर आपको ठंडी-ठंडी हवाओं के साथ-साथ शांति का अहसास होगा जिससे आपके मन को सुकून प्राप्त होगा। साथ ही वहां आपको बंदर भी मौज मस्ती करते हुए दिख जायेंगे। यह सब आपको रोमांचित कर देगा।

मंदिर में जाने के नियम

यह मंदिर पूर्णतया वायु सेना के अधिकार क्षेत्र में आता है इसलिये आपको यहाँ अंदर किसी भी प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक सामान, लेज़र, मोबाइल, हैंड बैग, कैमरा या ऐसी कोई भी चीज़ जिससे वायु सेना के नियमों का उल्लंघन होता है, वह अंदर ले जाने की मनाही है। इन सबको आप लॉकर रूम में जमा करा सकते है जहाँ प्रत्येक वस्तु को जमा कराने का शुल्क 10 से 20 रूपए है।

इसी के साथ ही आपको अंदर जाने के लिए एक पहचान पत्र दिया जायेगा जिसके लिए आपको अपना कोई एक सरकारी पहचान पत्र दिखाने की आवश्यकता होगी। इसी को देखकर ही आपको अंदर जाने की अनुमति दी जाएगी। इन सबके अलावा, किसी भी नियम का उल्लंघन करने पर आपके ऊपर सख्त कार्यवाही की जा सकती है।

मंदिर में जाने का समय

मंदिर के खुलने का समय सुबह 9 बजे है व बंद होने का शाम 5 बजे। मंदिर में आखिरी पहचान पत्र शाम 4:30 पर दिया जाता है, इसके बाद आपको अंदर प्रवेश की अनुमति नही है। इसी के साथ मंदिर में जाने का कोई भी शुल्क नही है किन्तु आपको अपना सामान लॉकर रूम में रखवाने के लिए शुल्क देना होगा।

किस मौसम में जाये मंदिर?

वैसे तो यह मंदिर साल के 12 महीने खुला रहता है व आप अपनी पसंद के महीने व मौसम में यहाँ की यात्रा कर सकते है। किन्तु जुलाई से अक्टूबर के महीनों में यहाँ मौसम सुहाना रहता है इसलिये श्रद्दालुओं की भीड़ भी इन्ही महीनों में सबसे ज्यादा रहती है। अक्टूबर के बाद यहाँ अत्यधिक ठंड पड़ती है लेकिन मंदिर के कपाट भक्तों के लिए हमेशा खुले रहते है।