श्री राधा के श्री कृष्ण के लिए भाव

कामना करना हर इंसान की स्वाभाविक दुर्बलता है।कामनाओं को पूरा करने के लिए  जीव अपनी संपूर्ण आयु व्यतीत कर देता है और शांति प्राप्त नहीं कर पाता। अविवेकपूर्ण कामनाये ना तो कभी पूरी होती है और ना ही शांति देती है। एक इच्छा अनेक इच्छाओं को जन्म देती है और अनेक इच्छाएं अनंत कामना को जन्म देती है। जिसकी जितनी अधिक इच्छाएं होती है उतना ही अधिक अशांत और उतना ही अधिक अज्ञानी होता है। प्रारब्ध के अनुसार इच्छाओं की प्राप्ति होती है। जिस व्यक्ति की सांसारिक इच्छाएं घटने लगती है उसकी भागवत कामना उतनी ही बढ़ने लगती है। उसकी भागवत कामना इतनी बढ़ जाती है कि क्षण भर भी भगवान की बिना जीना  उसे असंभव  सा प्रतीत होता है ऐसी ही दशा में कृष्ण का सानिध्य प्राप्त होता है।

कोई कोई भक्त भगवान से किसी वस्तु की कामना करते हैं किंतु संसार से उसे वे प्राप्त नहीं करना चाहते। संसार से नहीं लूंगा भगवान श्रीकृष्ण से ही लूंगा ऐसी भावना जितनी ग्रहण होती है उतनी ही कृष्ण भक्ति सच्ची होती है।

श्री राधा की सच्ची प्रीति श्यामसुंदर को अकेले रहने पर बेचैन करती रहती है इसलिए वह राधा के बिना नहीं रह सकते। श्री राधा निरंतर श्याम को अधिक से अधिक सुख पहुंचाने की कामना करती हैं। कभी सेवा द्वारा कभी लीला द्वारा तो कभी विनोद द्वारा अपनी संपूर्ण सखियों के साथ श्यामसुंदर को सुख प्रदान करती हैं। श्री राधा के पवित्र भाव को देखकर स्वयं श्यामसुंदर भी अपनी भूल का पश्चाताप करने लगते  है

किशोरी जी अपने  सहज स्नेहवश श्याम सुंदर से जीवो की कल्याण की कामना करती रहती है। किशोरी जी की इच्छा अनुसार जीव को सेवा की प्राप्ति हो जाती है। जीव किसी गोपी के अंगत होकर लीला में सेवा प्राप्त करके धन्य हो जाता है। किसी को झाड़ू सेवा, किसी को गायन की सेवा, किसी को वादन सेवा आदि विविध सेवाओं का वितरण कर दिया जाता है । श्रीजी की इच्छा होने पर यह मणि रत्न या नूपुर शरीर धारण करके रास में भाग लेते हैं। और पुनः अपने अपने स्वरूप में होकर सेवा करते हैं। जिन परम भाग्यवान जीवो को यह कृपा प्राप्त हो जाती है उनकी संभाल श्री किशोरी जी निरंतर करती रहती हैं ।श्याम सुंदर से वे यह भी कामना करती रहती है कि यह अजीब अपने संग से वंचित ना हो जाए।

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