आलसी किसान की कहानी

दोस्तों आज मैं आपको एक किसान की कहानी सुनाने जा रही हूं, ऐसा किसान जो खुद के खेत में काम नहीं करना चाहता था।

उस किसान का नाम है बाबूलाल, जिसके खेत की जमीन थोड़ी कम उपजाऊ थी, लेकिन वह अपने खेत में काम नहीं करता था मन लगाकर, जिससे उसके खेत की जमीन और भी अन-उपजाऊ हो गई थी।

वाह चाहता था कि उसके खेत में कोई और व्यक्ति काम करें, इसलिए उसने बहुत लोगों से अपने खेत में काम करने के लिए पूछा, खेत की जमीन अन-उपजाऊ थी, इसलिए कोई उसके खेत में काम नहीं करना चाहता था।

जब वह काफी लोगों से खेत में काम करने के लिए पूछ पूछ कर थक गया तो उसने अखबार में इश्तहार निकलवाया कि क्या उसके खेत में कोई काम करना चाहता है ?

बहुत लोग आए और उसका खेत देखकर वापस चले गए लेकिन, एक किसान मजदूर था दुबला पतला सा जिसने उसके खेत में काम करने के लिए हामी भरी, लेकिन साथ ही साथ उसने अपनी एक शर्त भी रखी बाबूलाल के सामने। उसने बाबूलाल से कहा कि, मैं आपके खेत में काम तो कर लूंगा लेकिन जैसे ही ठंडी हवा आएगी तो मैं सो जाऊंगा क्योंकि मुझे ठंडी हवा बहुत पसंद है और ठंडी हवा आने से ही मुझे तुरंत नींद आने लगती है।

बाबूलाल को उसके खेत में काम करने के लिए कोई मजदूर नहीं मिल रहा था, इसलिए उसने उस दुबले-पतले मजदूर की शर्त मान ली और उसे काम पर रख लिया।

6 महीने होने को आ गए थे, मजदूर ने मन लगाकर बाबूलाल के खेत में काम किया और फसल भी खूब शानदार हुई, लेकिन कटाई से पहले बारिश की संभावना थी, बाबूलाल को चिंता हुई कि बारिश होगी तो उसकी फसल खराब हो जाएगी, इसलिए उसने मजदूर से विनती करी कि फसल जल्दी से समय पर काट लो अन्यथा बारिश में फसल खराब हो सकती है।

किसान मजदूर ने बाबूलाल को अपनी शर्त याद दिलाई और कहा कि जैसा कि मैं आपको पहले बता चुका हूं कि मुझे ठंडी हवा में नींद आ जाती है। बाबूलाल को उसकी शर्त की बात सुनकर गुस्सा आया लेकिन वह कुछ कह नहीं सकता था मजदूर को, क्योंकि मजदूर अपनी शर्त पहले ही बता चुका था बाबूलाल को।

लेकिन  2 दिन बाद जब बाबूलाल खेत में गया तो खेत की फसल अच्छे से कटी हुई थी और ठीक से ढक कर रखी हुई थी, बाबूलाल यह सब देख कर आश्चर्यचकित हुआ और ठंडी हवा भी चल रही थी उस समय, लेकिन मजदूर सो रहा था।

दोस्तों इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि समय से अपना काम करें, काम को भाग्य के भरोसे ना छोड़ें उसके बाद मजदूर की तरह जिंदगी का आनंद ले।

दोस्तों इस कहानी से मुझे एक कबीर दास जी का  एक दोहा भी याद आया-

‘काल करे सो आज कर आज करे सो अब। 

पल में प्रलय होएगी बहुरि करेगो कब।।’

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