कैसे पड़े कुमाऊँ और गढ़वाल नाम

उत्तराखंड के दो मंडल कुमाऊँ और गढ़वाल इनके नाम कैसे पड़े आइए जानते हैं।

कुमाऊँ  कुमाऊँ शब्द की उत्पत्ति का कारण यह माना जाता है, कि कुमाऊँ मंडल के चम्पावत जिले की ‘कानदेव‘ नामक पहाड़ी पर भगवान ने कुर्मु रूप धारण कर तीन सहस्त्र वर्ष तक तपस्या की थी हा हा हु हु देवतागड़ तथा नारदादि मुनीश्वरो ने उनकी प्रशस्ति गाई थी लगातार तीन सहस्त्र वर्षो तक तपस्या करने के कारण भगवान  के पदचिन्ह यहां पर अंकित हो गए। जो आज भी यहां विद्यमान है। तब से इस पर्वत का नाम कुर्मांचल हुआ। कुर्म + अचल = कुर्म भगवान जहां पर अचल हुए 

कुर्मांचल का प्राकृतिक रूप बिगड़ते -बिगड़ते कुमु हो गया। जो बाद में कुमाऊं में तब्दील हो गया। पहले यह नाम केवल चम्पावत के आस पास के गांवो को दिया गया था  किन्तु जब यहाँ चंद शासको ने राज्य किया तब यह नाम पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, नैनीताल के लिए भी उपयोग किया जाने लगा। तत्कालीन मुस्लिम शासक भी चंदो के राज्य को कुमाऊँ का राज्य ही कहते थे। तब से यह नाम कुमाऊँ आज तक प्रचलित है।

गढ़वाल – आज के गढ़वाल क्षेत्र में पहले छोटे-छोटे कई राज्य थे, जिनकी संख्या 52 थी, इन 52 क्षेत्रों के अलग-अलग राजा हुआ करते थे।गढ़वाल शब्द मुख्य रूप से परमार वंश की देन है । चौदहवी शताब्दी के राजा अजयपाल ने  52 छोटे -छोटे गढ़ में विभक्त इस क्षेत्र को एक सूत्र में पिरो दिया, और खुद को इस राज्य का गढवाला घोषित कर दिया तब से इस क्षेत्र को गढ़वाल के नाम से जाना जाने लगा।

 देखिये बागेश्वर की जानकारी देता विडियो ?


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