Varanasi वाराणसी: विश्व की आध्यात्मिक राजधानी

by Neha Mehta
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UttarPrdesh: वाराणसी (Varanasi) जिसे बनारस भी कहा जाता है। भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में गंगा नदी के तट पर स्थित एक प्राचीन नगर है। हिन्दू धर्म में यह एक अतयन्त महत्वपूर्ण तीर्थस्थल  है, और बौद्ध व जैन धर्मों का भी एक तीर्थ है।

ये शहर सहस्रों वर्षों से भारत का, विशेषकर उत्तर भारत का सांस्कृतिक एवं धार्मिक केन्द्र रहा है। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना वाराणसी में ही जन्मा एवं विकसित हुआ है।

भारत के कई दार्शनिक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ वाराणसी में रहे हैं, जिनमें कबीर, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, त्रैलंग स्वामी, शिवानन्द गोस्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया एवं उस्ताद बिस्मिल्लाह खां आदि कुछ हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने हिन्दू धर्म का परम-पूज्य ग्रंथ रामचरितमानस यहीं लिखा था और गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन यहीं निकट ही सारनाथ में दिया था।

वाराणसी नाम का उद्गम संभवतः यहां की दो स्थानीय नदियों वरुणा नदी एवं असि नदी के नाम से मिलकर बना है। ये नदियाँ गंगा नदी में क्रमशः उत्तर एवं दक्षिण से आकर मिलती हैं।

ऋग्वेद में शहर को काशी या कासी नाम से बुलाया गया है। इसे प्रकाशित शब्द से लिया गया है, जिसका अभिप्राय शहर के ऐतिहासिक स्तर से है, क्योंकि ये शहर सदा से ज्ञान, शिक्षा एवं संस्कृति का केन्द्र रहा है।

इस शहर के भव्यता का अहसास प्रसिद्ध अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन के इस कथन  “Banaras is older than history, older than tradition, older even than legend and looks twice as old as all of them put together” द्वारा लगा सकते हैं।

यूँ तो यहाँ 88 घाट है, जिनमें प्रातः और सायकालीन गंगा आरती दो घाटों दशाश्वमेघ घाट और दूसरा अस्सी घाट में आयोजित की जाती है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, काशी नगर की स्थापना हिन्दू भगवान शिव ने लगभग ५००० वर्ष पूर्व की थी। वाराणसी में चार बड़े विश्वविद्यालय स्थित हैं: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइयर टिबेटियन स्टडीज़ और संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय। यहां के निवासी मुख्यतः काशिका भोजपुरी बोलते हैं, जो हिन्दी की ही एक बोली है। वाराणसी को प्रायः ‘मंदिरों का शहर’, ‘भारत की धार्मिक राजधानी’, ‘भगवान शिव की नगरी’, ‘दीपों का शहर’, ‘ज्ञान नगरी’ आदि विशेषणों से संबोधित किया जाता है।

महाभारत में वर्णित एक कथा के अनुसार एक स्वयंवर में पाण्डवों और कौरवों के पितामह भीष्म ने काशी नरेश की तीन पुत्रियों अंबा, अंबिका और अंबालिका का अपहरण किया था। इस अपहरण के परिणामस्वरूप काशी और हस्तिनापुर की शत्रुता हो गई।

कर्ण ने भी दुर्योधन के लिये काशी राजकुमारी का बलपूर्वक अपहरण किया था, जिस कारण काशी नरेश महाभारत के युद्ध में पाण्डवों की तरफ से लड़े थे। कालांतर में गंगा की बाढ़ ने हस्तिनापुर को डुबा दिया, तब पाण्डवों के वंशज वर्तमान इलाहाबाद जिले में यमुना किनारे कौशाम्बी में नई राजधानी बनाकर बस गए। उनका राज्य वत्स कहलाया और काशी पर वत्स का अधिकार हो गया।

वाराणसी के आकर्षण 

वाराणसी का पुराना शहर, गंगा तीरे का लगभग चौथाई भाग है, जो भीड़-भाड़ वाली संकरी गलियों और किनारे सटी हुई छोटी-बड़ी असंख्य दुकानों व सैंकड़ों हिन्दू मंदिरों से पटा हुआ है। ये घुमाव और मोड़ों से भरी गलियां किसी के लिये संभ्रम करने वाली हैं। ये संस्कृति से परिपूर्ण पुराना शहर विदेशी पर्यटकों के लिये वर्षों से लोकप्रिय आकर्षण बना हुआ है।

वाराणसी या काशी को हिन्दू धर्म में पवित्रतम नगर बताया गया है। यहां प्रतिवर्ष 10 लाख से अधिक तीर्थ यात्री आते हैं। यहां का प्रमुख आकर्षण है काशी विश्वनाथ मंदिर, जिसमें भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग में से प्रमुख शिवलिंग यहां स्थापित है।

हिन्दू मान्यता अनुसार गंगा नदी सबके पाप मार्जन करती है और काशी में मृत्यु सौभाग्य से ही मिलती है और यदि मिल जाये तो आत्मा पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो कर मोक्ष पाती है। इक्यावन शक्तिपीठ में से एक विशालाक्षी मंदिर यहां स्थित है, जहां भगवती सती की कान की मणिकर्णिका गिरी थी। वह स्थान मणिकर्णिका घाट के निकट स्थित है।

बनारस (वाराणसी) हमेशा प्राचीन भारत में धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व के लिए जाना जाता आया है। यह शहर गंगा नदी के तट पर है। इस शहर में 88 घाट है। इन घाटो का उपयोग पूजा अर्चना, धार्मिक अनुष्ठानों और अंतिम संस्कार के अनुष्ठानों के लिए किये जाते है। लोग अक्सर इन घाटो पर नौका यात्रा करते है। यह नौकाएं दशाश्वमेध घाट से हरिश्चंद्र घाट तक ले जाती है। इन घाटो की चलते हुए भी यात्रा की जा सकती है।

पौराणिक स्रोतों के अनुसार, नदी के तट पर पाँच प्रमुख घाट हैं, जो कि काशी के पवित्र शहर: अस्सी घाट, दशाश्वमेध घाट, मणिकर्णिका घाट, पंचगंगा घाट और आदि केशव घाट की एक खासियत के साथ जुड़े होने के कारण महत्वपूर्ण हैं।

अस्सी घाट

यह घाट बहुत लोकप्रिय है क्योंकि यह बहुत कम घाटों में से एक है जो शहर के साथ एक चौड़ी गली से जुड़ा हुआ है। अस्सी घाट नाम दिया गया है क्योंकि यह 80 वां घाट है।

संगीत समारोहों और खेलों सहित स्थानीय त्योहार नियमित रूप से सुंदर अस्सी घाट पर होते हैं जो घाटों की निरंतर रेखा के अंत में होते हैं। यह चित्रकारों और फोटोग्राफरों की पसंदीदा साइट है। यह अस्सी घाट पर है कि भारत सेवाश्रम संघ के संस्थापक स्वामी प्रणबानंद ने गोरखपुर के गुरु गंभीरानंद के तत्वावधान में भगवान शिव के लिए अपने ‘तपस्या’ (प्रयास) में ‘सिद्धि’ (पूर्णता / सफलता) प्राप्त की।

दशाश्वमेध घाट

दशाश्वमेध घाट विश्वनाथ मंदिर के करीब स्थित है, और शायद सबसे शानदार घाट है। दो हिंदू पौराणिक कथाएं इसके साथ जुड़ी हुई हैं: एक के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने भगवान शिव का स्वागत करने के लिए इसे बनाया था।

एक अन्य के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने दसा अश्वमेध यज्ञ के दौरान दस घोड़ों की बलि दी थी। पुजारी का एक समूह प्रतिदिन शाम को इस घाट “अग्नि पूजा” (पूजा से अग्नि) में जाता है, जिसमें भगवान शिव, नदी गंगा, सूर्य (सूर्य), अग्नि और संपूर्ण ब्रह्मांड के प्रति समर्पण किया जाता है।

मणिकर्णिका घाट

प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, मणिकर्णिका घाट के मालिक ने राजा हरिश्चंद्र को एक दास के रूप में खरीदा और उन्हें मणिकर्णिका पर काम कराया। हिंदू शवदाह यहाँ प्रचलित हैं, हालाँकि मणिकर्णिक घाट पर अंतिम संस्कार के लिए शवों को ले जाया जाता है। अन्य स्रोतों के अनुसार मणिकर्णिक घाट का नाम झांसी की रानी लक्ष्मीभाई के नाम पर रखा गया है।

सिंधिया घाट

सिंधिया घाट को उत्तर में शिंदे घाट की सीमा के रूप में भी जाना जाता है, जिसका शिव मंदिर लगभग 150 साल पहले घाट के निर्माण के अत्यधिक भार के परिणामस्वरूप नदी में आंशिक रूप से डूबा हुआ था। घाट के ऊपर, काशी के कई सबसे प्रभावशाली मंदिर सिद्धक्षेत्र के गलियों के तंग भूलभुलैया के भीतर स्थित हैं। परंपरा के अनुसार, हिंदू देवता अग्नि का जन्म यहां हुआ था। हिंदू धर्मावलंबी इस स्थान पर वीरेश्वर, सभी नायकों के भगवान, एक पुत्र के लिए प्रचार करते हैं।

मान-मंदिर घाट

जयपुर के महाराजा जय सिंह द्वितीय ने 1770 में इस घाट का निर्माण कराया। घाट के उत्तरी भाग में एक बेहतरीन पत्थर की बालकनी है। भक्त यहाँ चंद्रमा के भगवान सोमेश्वर के लिंगम में श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

ललिता घाट

नेपाल के दिवंगत राजा ने इस घाट को वाराणसी के उत्तरी क्षेत्र में बनवाया था। यह गंगा केशव मंदिर का स्थान है, जो काठमांडू शैली में बना एक लकड़ी का मंदिर है, मंदिर में पशुपतिेश्वर की एक छवि है, जो भगवान शिव का एक रूप है।

वाराणसी मंदिरों का नगर है। लगभग हर एक चौराहे पर एक मंदिर तो मिल ही जायेगा। ऐसे छोटे मंदिर दैनिक स्थानीय अर्चना के लिये सहायक होते हैं। इनके साथ ही यहां ढेरों बड़े मंदिर भी हैं, जो वाराणसी के इतिहास में समय समय पर बनवाये गये थे। इनमें काशी विश्वनाथ मंदिर, अन्नपूर्णा मंदिर, ढुंढिराज गणेश, काल भैरव, दुर्गा जी का मंदिर, संकटमोचन, तुलसी मानस मंदिर, नया विश्वनाथ मंदिर, भारतमाता मंदिर, संकठा देवी मंदिर व विशालाक्षी मंदिर प्रमुख हैं।

काशी विश्वनाथ मंदिर

ये मंदिर गंगा नदी के दशाश्वमेध घाट के निकट ही स्थित है। प्रत्येक वर्ष नाग पंचमी के अवसर पर भगवान विष्णु और शेषनाग की पूजा की जाती है। यहां संत भास्कपरानंद की समाधि भी है। मंगलवार और शनिवार को दुर्गा मंदिर में भक्तों की काफी भीड़ रहती है। इसी के पास हनुमान जी का संकटमोचन मंदिर है। महत्ता की दृष्टि से इस मंदिर का स्थागन काशी विश्वभनाथ और अन्नेपूर्णा मंदिर के बाद आता है।

संकट मोचन मंदिर राम भक्त हनुमान को समर्पैत है और स्थानीय लोगों में लोकप्रिय है। यहां बहुत से धार्मिक एवं सांस्कृतिक आयोजन वार्षिक रूप से होते हैं। ७ मार्च २००६ को इस्लामी आतंकवादियों द्वारा शहर में हुए तीन विस्फोटों में से एक यहां आरती के समय हुआ था। उस समय मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ थी। साथ ही एक विवाह समारोह भी प्रगति पर था।

व्यास मंदिर, रामनगर प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार जब वेद व्यास जी को नगर में कहीं दान-दक्षिणा नहीं मिल पायी, तो उन्होंने पूरे नगर को श्राप देने लगे।

यहाँ के इन घाटो का निर्माण 17वीं सदी में किया गया। इन घाटों में से अधिकांश मराठों , सिंधिया , होलकर और पेशवा के शासनकाल के दौरान बनाया गया है। यह परिवारों अभी भी कुछ घाटो के संरक्षक हैं। कुछ घाट निजी स्वामित्व में हैं ।

ज्यादातर घाटो का प्रयोग आध्यात्मिक और धार्मिक ज्ञान के लिए किया जाता है। परन्तु ये घाट बेहद लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण हैं। फोटोग्राफरों की भीड़ से सारी दुनिया में इस जगह पर आती है। तीर्थयात्रि और योगि सूर्योदय के दौरान उनकी सुबह पूजा प्रदर्शन करने के लिए यहां आते हैं। सूर्यास्त में एक महा आरती (नदी पूजा) की जाती है। यह महा आरती दशाश्वमेध घाट पर की जाती है।

प्रमुख त्योहार

गंगा त्योहार सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है । छठ पूजा ( सूर्य देवता की पूजा ) जिसमे उपवास और पानी में खड़े पूजा की जाती हैं, भी यहाँ मनाया जाता है। इस त्यौहार में सूरज की प्रार्थना करते हैं । हिंदू त्योहार महीने ( सितम्बर – नवम्बर) के दौरान, इन घाटों भारी भीड़ जमा होती है । राम नवमी , दशहरा , दीवाली, शिवरात्रि और कार्तिक पूर्णिमा यहाँ पे मनाये जाने वाले बड़े समारोहों हैं ।

कैसे पहुंचे 

ट्रैन से -बनारस देश के सभी प्रमुख शहरों के साथ रेलवे लाइन पर अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। प्रमुख रेलवे स्टेशनों बनारस जंक्शन, मुगलसराय और मन्दुअदिह हैं।

हवाई अड्डा – पास का हवाई अड्डा लाल बहादुर शास्त्री हवाई अड्डा है।

सड़क मार्ग – यात्रा ऑपरेटरों और राज्य परिवहन निगम की बसों के निर्धारित समय पर चलते हैं। आगंतुकों को गंगा के किनारे ले जाने के लिए बस स्टेशन से एक टुक – टुक ले जा सकते हैं ।

निकट के स्थल

    • मंदिर – गौरी माता मंदिर , काल भैरव मंदिर , दुर्गा मंदिर , सारनाथ मंदिर
    • बनारस हिंदू विश्वविद्यालय
    • चुनार का किला
    • रामनगर किला

बनारस के बारे में और जानने के लिए वीडियो देखिए।



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