क्या होती है सुवाल पथाई की रस्म

अपना भारत विभिन्न सभ्यताओं और संस्कृतियों को समेटे हुए है। यहां की सभ्यता और संस्कृति, विभिन्न प्रकार के रीति-रिवाजों, त्योहारों, विभिन्न प्रकार के परिधानों, भाषाओं और बोलियों से सजी हुई है।

आज हम बात कर रहे भारत मे पहाड़ी शादी के एक रस्म की। वैसे तो मैं पहाड़ी नहीं हूं। लेकिन हां, बचपन से उत्तराखंड में रहती हूं। इसलिए मेरे बहुत सारे दोस्त पहाड़ी है। अभी हाल ही में बचपन की जिगरी पहाड़ी दोस्त की शादी में जाने का मौका मिला। इसी बहाने उनके रस्मों रिवाजों को भी जानने का मौका मिला। पहाड़ी दोस्त की शादी में जाने पर बहुत सारे पहाड़ी लोगों से मिलने पर मैं उनसे थोड़ी घुल-मिल गई थी।

पहाड़ी लोग थे ही इतने मिलनसार कि मैं जल्दी ही उनसे घुलमिल गई। मेरी दोस्त जिसकी शादी थी, उसने मुझे बताया कि आज उसकी हल्दी की रस्म है, उसके बाद सुवाल पथाई की रस्म है।

मैंने हल्दी की रस्म के बारे में तो सुना था, लेकिन सुवाल पथाई की रस्म के बारे में पहली बार सुना। जो महिला सुवाल पथाई के लिए तैयारी कर रही थीं। आखिर मैंने उनसे पूछ ही लिया कि आप कोई विशेष पकवान के लिए आटा गूथ रहे हो क्या ? तो वह हंसते हुए बोली- नहीं बेटा, पकवान के लिए आटा नहीं गूथ रहे, हम यह तैयारी सुवाल पथाई की रस्म के लिए कर रहे हैं।

फिर मेरी जिज्ञासा हुई उनसे पूछने की, कि इस रस्म में क्या करते हैं? उन्होंने कहा कि यह जो आटा मैं गूथ रही हूं, इससे लड़के के माता-पिता ( समधी समधन) की मूर्ति बनाई जाएगी और उन्हें अच्छे से सजाया जाएगा। समधन के सिर पर सफेद बाल और समधी के सिर पर टोपी भी पहनाई जाएगी।

सुवाल पथाई की रस्म – समधी समधन

समधी समधसमध शादी में मजाक के तौर पर समधी – समधन की मूर्ति बनाई जाती है, और मजाकिया तौर पर समधी समधन को अच्छी क्वालिटी का सिगरेट भी पकड़ाया जाता है। समधी- समधन की मूर्ति लड़की और लड़के दोनों के घर बनती है, मतलब की सुवाल पथाई की रस्म दोनों के घर होती है और फिर इन मूर्तियों का आदान प्रदान भी किया जाता है।

उन्होंने हंसते हुए कहा कि रिश्ते में तो मैं भी समधन ही हूं, लेकिन मैं अपनी मूर्ति खुद बना रही हूं। उनकी यह बात सुनकर वहां बैठे सभी लोग हंसने लगे शादी का माहौल और खुशनुमा हो गया था।

सुवाल पथाई (Sual Pathai) की रस्म के दौरान एक मंगल गीत भी गाया जाता है। ….
सूवा रे सूवा, बणखंडी सूवा,
जा सूवा घर-घर न्यूत दी आ।

हरियाँ तेरो गात, पिंगल तेरो ठून,
रत्नन्यारी तेरी आँखी, नजर तेरी बांकी,
जा सूवा घर-घर न्यूत दी आ। गौं-गौं न्यूत दी आ।

नौं न पछ्याणन्यू, मौ नि पछ्याणन्य़ूं, कै घर कै नारि दियोल?
राम चंद्र नौं छु, अवध पुर गौ छु, वी घर की नारी कैं न्यूत दी आ।

सूवा रे सूवा, बणखंडी सूवा,
जा सूवा घर-घर न्यूत दी आ।

गोकुल गौं छू, कृष्ण चंद्र नौं छु, वी घर की नारी कैं न्यूत दी आ।
सूवा रे सूवा, बणखंडी सूवा, जा सूवा घर-घर न्यूत दी आ।

कैलाश गौ छू, शंकर उनर नु छू, वी घवी नारी न्यूत दी आ।
सूवा रे सूवा, बणखंडी सूवा, जा सूवा घर-घर न्यूत दी आ।

सूवा रे सूवा, बणखंडी सूवा,
जा सूवा घर-घर न्यूत दी आ।

अघिल आधिबाड़ी, पछिल फुलवाड़ी, वी घर की नारी कैं न्यूत दी आ।
हस्तिनापुर गौं छ, सुभद्रा देवी नौं छ, वी का पुरुष को अरजुन नौं छ,
वी घर, वी नारि न्यूंत दी आ।

सूवा रे सूवा, बणखंडी सूवा,
जा सूवा घर-घर न्यूत दी आ।

तो यह भी सुवाल पथाई की रस्म अदायगी। मिलते हैं ऐसी ही अगली रोचक जानकारी के साथ।

 

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