कुमाऊं का एक राजा जो जान बचाने के लिये बिल्ली की तरह डोके में छिपा

by Deepak Joshi
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A king of Kumaon who hides in a doka like a cat to save his life

सन् 1597 ई0 में कुमाऊं के राजा रुपचन्द की मौत हो जाने के बाद उसका बेटा लक्ष्मीचन्द को कुमाऊं की गद्दी पर बैठा. मनोदयकाव्य के आधार पर इस समय गढ़वाल की गद्दी पर मानशाह विराजमान था. लक्ष्मीचन्द ने गढ़राज्य पर सात बार आक्रमण किया लेकिन उसे हर बार मानशाह से हार का समाना करना पड़ा. बार-बार पराजित होने के कारण लोगों ने उस दुर्ग का नाम जहां से वह हमला करता था ‘स्याकबुंगा‘ यानि गीदड़ गढ़ रखा दिया.

सालों साल तक चलने वाले युद्ध करने से ऐसे सैनिकों के दल बन गये थे जिनका काम ही युद्ध लड़ना था. उन्हें जीते हुये हिस्से में निर्वाह के लिए ‘बीसी बन्दूक‘ नामक जागीर दी जाती थी. उनके लिए आवश्यक था कि जब भी युद्ध के लिए सैनिक बुलाये जायें तो तुरन्त युद्ध के लिए चल पड़ें

लक्ष्मीचन्द और मानशाह के बीच सातवीं बार का युद्ध पैनागढ़ में हुआ था. पैनागढ़ में लक्ष्मीचन्द खूब बड़ी सेना के साथ लड़ने को तैयार था. बार बार के आक्रमण से खिन्न मानशाह ने इस बार शत्रु के दांत खट्टे करने की ठान ली थी. राजा ने अपने दो सेनापतियों नन्दी तथा भुंगी को युद्ध के लिए प्रस्थान करने का आदेश दिया.

युद्ध में मानशाह की सेना के कुमाऊं की सेना को धूल चटा दी. मानशाह की विशाल सेना और कुशल सेनापतियों से लक्ष्मीचन्द की सेना भयभीत हो गयी थी. इस युद्ध में लक्ष्मीचन्द को बुरी तरह पराजय का मुंह देखना पड़ा. पैनागढ़ के युद्ध में लक्ष्मीचन्द की सेना का बहुत बड़ा भाग समाप्त हो गया और बची हुई सेना भाग गयी.

लक्ष्मी चंद की रक्षा के लिये थोड़े से सैनिक उसके साथ थे. गढ़वाली सेना ने युद्ध में ऐसा खौफ़ का मंजर पैदा किया कि लक्ष्मीचंद एक डोके में बैठकर अपनी राजधानी अल्मोड़ा भागा. एक डोके में नीचे लक्ष्मीचंद और ऊपर से फटे पुराने कपड़े डाल दिये गये ताकि किसी को सन्देह न हो कि डोके में राजा छुपा है. मार्ग में डोका बोकने वाले आपस की बातचीत में कहते-

पापी राजा आप लै चोरि कि चार भाजनौछः हमन लै दुख दीनो छः

पापी राजा चोर भांति भाग रहा है हमें दुखः दे रहा है

राजा लक्ष्मीचंद के इस तरह भागने से उसकी प्रजा इतनी आहत हुई की उसका नाम ही लोगों ने ‘लखुली बिराली‘ यानि छिपी बिल्ली रख दिया. लक्ष्मीचंद इस घटना से बड़ा शर्मसार हुआ. उसने देवी देवताओं को मनाकर फिर से गढ़वाल पर आक्रमण किया. युद्ध में पूर्ण विजय के संबंध में आज भी मतान्तर है पर इस बार लक्ष्मीचंद ने गढ़राज्य के सीमान्त में लूटमार कर कुछ धन एकत्रित जरुर कर लिया था.


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