क्यों भारत को चीन के साथ अपने सम्बन्ध सुधारना चाहिए?

by MK Pandey
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Hangzhou South - Lingyin Temple

पश्चिमी देशों पर हमारी बढती निर्भरता को कम करने और शक्ति संतुलन बनाने के लिए हमें चीन के साथ अपने सम्बन्ध अच्छे बनाने हेतु सधी हुई पहल करनी चाहिए।

आज हमारे देश पर जहाँ –  गूगल, फेसबुक, ट्विटर, अमेज़न, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप जैसी अमेरिकन कंपनीज भारत के बाज़ार पर अपना प्रभाव बढ़ाने के साथ यहाँ के बौदिक तंत्र पर अपना नियत्रण बड़ा रही है,  आज ये कंपनीज ही हैं – यह तय करती है कि – हमें क्या सर्च करना चाहिये, क्या खरीदना चाहिए, किन विचारों को सोचना चाहिए और क्या हमारे लिए अच्छा नहीं है। किन टॉपिक्स को ट्रेंड करना चाहिए, पेड हो या आर्गेनिक, हम इससे बाहर कुछ नहीं कर सकते है। साथ ही इनकी किसी बात से सहमत न हो तो कहीं शिकायत नहीं करते सकते, क्योकि सम्प्रेषण का माध्यम भी यही सब साइट्स है, जो  कभी भी आपका खाता बंद करके आपकी आवाज़ को रोक सकती है।

अव जबकि लम्बे समय से चल रही भारत और चाइना के बीच सीमा पर चल रहा तनाव ख़त्म हो गया है। तो हमें चाइना के साथ संबंधों पर पुनः विचार करना चाहिए।

डोकलाम और गलवान विवाद में चीन भारतीय इच्छाशक्ति और सामर्थ्य को देखा, हमने उन्हें बता दिया कि कि आज भारत अपनी रक्षा के लिए पश्चिमी देशों के आगे हाथ फ़ैलाने वाला नहीं रहा, और स्वयं ठोस जवाब दे सकता है।

Binijang1962 में भारत की चाइना से युद्ध में हारा, और हमारे हिमालयी भू भाग का कुछ हिस्सा  उनके नियत्रण में चला गया – हमारे सैनिकों के बलिदान और भूभाग के छिनने के कारण हमारी पिछली दो से तीन जनरेशन इस आत्म पीड़ा साथ जी रही है। लेकिन इस क्षोभ को और विस्तार देने की जगह आज जब हम आर्थिक और सामरिक मोर्चों में मजबूत हो रहे है, अपने अंतरराष्ट्रीय सम्बन्ध मजबूत बना रहे है। तब चीन के साथ भी हमें संबंधों का पुनार्मुल्याकन करना चाहिए।

तब की परिस्थितयों अलग थी, भारत सामरिक रूप से सशक्त देश नहीं था, तब जबकि दुनिया में ताकतवर देश अपनी सीमाओं के विस्तार में लगे थे, हम आजादी के स्वतंत्र राष्ट्र के दो दशक भी पुरे नहीं कर पाए थे

1947 से पूर्व 200 वर्षों तक ब्रिटेन ने, व्यापार के लिए भारत आकर हमारे देश पर शासन किया – तब भारतियों के साथ हिंसक, अमानवीय और अपमानजनक  होता था, हम भारतीय उनके लिए  पशु तुल्य थे।

ब्रिटिश शासन का हम पर इतना गहरा प्रभाव पढ़ा – से हम में से – अधिकांश भारतीय आज भी इतनी हीन भावना से रहे है कि – पश्चिम में सफ़ेद चमड़ी के लोग कुछ कह दे तो उसे तुरंत स्वीकार कर लेते है, उनका हमारी किसी बात के लिए समर्थन हमारे लिए ईश्वर से मिले सर्टिफिकेट तुल्य होता है।

उनका हम पर प्रभाव है कि – हमारे देश में अग्रेजी बोलने वाले लोग अधिक ज्ञानी और विद्वान समझे जाते है, जबकि भाषा सिर्फ संवाद का माध्यम है, भाषा किसी वाहन की तरह है जो – उसमे बैठे सवार का IQ या चरित्र अथवा बौदिक स्तर नहीं बदल सकती।

गोरे रंग की चमड़ी के पीछे हमारे लोगों की मानसिकता इतनी प्रभावित है कि  यहाँ के लोग प्रकृति प्रदत रंग की जगह उनके जैसा स्किन कलर पाने के लिए लिए सौन्दर्य प्रसाधन पर करोड़ो – अरबों रुपया खर्च कर रहे है। क्या इसकी व्याख्या मिल सकती कि – रंग बदलने से मनुष्य के आन्तरिक गुण – स्वभाव – मस्तिष्क पर कैसे अंतर पड़ता है?

आज हम गर्व से कहते है – यह ब्रिटिश समय की इमारत है और इस बात के लिए भी गर्व करते कि उनकी भवन निर्माण तकनीक बहुत उन्नत थी इतने साल बाद ये निर्माण आज भी टिके है। हलाकि उनके आने से पूर्व भी भारत की निर्माण तकनीक उन्नत थी, कई प्राचीन भारतीय मंदिर सैकड़ों, हजारों वर्षों के बाद भी आज मजबूती से टीके है।

उनकी अदालतों में हमारे लिए न्याय नहीं था। इस सबके बावजूद और आज जब हम पुराने दिनों को भुलाकर उनसे ब्रिटेन को सहयोगी और मित्र मुल्क के रूप में स्वीकार कर सकते है तो, चीन को क्यों नहीं?

जब ब्रिटेन से प्राप्त इतनी असहय वेदना के बाद – आज की पीढ़ी में ब्रिटेन के लिए कोई बैर भाव नहीं है, तब फिर चीन – भारत युद्ध में हार की पीड़ा के दंश से क्यों भारतीय बाहर नहीं निकलते, क्या इसलिए कि वो हमारी ही तरह गहरी रंग की चमड़ी के है?

कई लोग कह देते है कि – चीन पर विश्वास नहीं किया जा सकता है। यह ठीक बात है, और करना भी नहीं चाहिए।  दुनिया के सम्बन्ध कूटनीति पर चलते है विश्वास पर नहीं। कुछ समय पूर्व  ब्रिटेन भी यूरोपीय समूह से अलग हुआ, दुनिया की सीमाए तो सदा से बदलती रही है। यो तो दुनिया में कोई भी देश आँख बंद कर किसी दुसरे देश पर विश्वास नहीं करता है, सभी अपना हित लाभ लेकर संबंधो को आगे बढ़ाते है, तो फिर चीन के साथ अतिरिक्त बैर का भाव लेकर क्या लाभ?

चीन से मित्रता की पहल के लिए भारत को ही आगे बढ़ना हो, क्योकि आम चीनी लोग, भारतीयों की तरह लोकतान्त्रिक देश में रहकर स्वतंत्र विचारों को नहीं रख सकते। चीनी लोगों की अपनी वैचारिक सीमाएं है, ब्रिटेन ने वहां अफीम की खेती कर वह को लोगो को अफीम की लत लगायी, चीनी लोग इस बात के लिए अब भी ब्रिटेन को माफ़ नहीं करते, चीन का इतिहास में कई रक्त क्रांतियाँ हुई है और स्याह इतिहास से वो गुजरे है। खैर उनके आतंरिक बातों से हम सरोकार न रख, अब हम समझे कि आज की  क्यों चीन से भारतियों के अच्छे सम्बन्ध होने चाहिए।

chinese peopleअसल में पश्चिमी देशों पर हमारी बढती निर्भरता को कम करने और शक्ति संतुलन बनाने के लिए हमें चीन के साथ अपने सम्बन्ध अच्छे बनाने हेतु सधी हुई पहल करनी चाहिए।

आज हमारे देश पर जहाँ –  गूगल, फेसबुक, ट्विटर, अमेज़न, इन्स्टाग्राम, व्हात्सप्प जैसी अमेरिकन कंपनीज भारत के बाज़ार पर अपना प्रभाव बढ़ाने के साथ यहाँ के बौदिक तंत्र पर अपना नियत्रण बड़ा रही है,  आज ये कंपनीज ही हैं जो यह तय करती है कि – हमें क्या सर्च करना चाहिये, क्या खरीदना चाहिए, किन विचारों को सोचना चाहिए और क्या हमारे लिए अच्छा नहीं है। हम इससे बाहर कुछ नहीं कर सकते है, लेकिन आप किसी बात से सहमत न हो तो कहीं शिकायत नहीं करते सकते, क्योकि सम्प्रेषण का माध्यम भी यही सब साइट्स है, जो  कभी भी आपका खाता बंद करके आपकी आवाज़ को रोक सकती है। हमारे  बिज़नस को रिव्यु करने के लिए ये साइट्स है, इनके कामों को रिव्यु करने के लिए कौन है?

हमारे कंप्यूटर के प्रोसेसर, मोबाइल चिप, ऑपरेटिंग सिस्टम, अनेकों अन्य उत्पाद और अत्याधुनिक हथियार, फाइटर प्लेन अधिकतर अमेरिका से आते है, मतलब देश की आय का एक बड़ा हिस्सा अमेरिका को संपन्न बनाने में खर्च होता है, और एक देश विशेष पर भारत की निर्भरता कम करने और शक्ति के संत्तुलन की तैयारी करनी चाहिए – किसी भी एक देश पर अत्यधिक आस्था और निर्भरता हमारी मौलिक सोच और वैचारिक स्वतंत्रा के लिए गंभीर खतरा है।

वर्तमान समय में चीन ही एक ऐसा ऐसा देश है – जिस पर पश्चिमी देश अपना नियंत्रण नहीं रख पा रहे। और वो चाहते है कि पूरी दुनिया में वो सुपर पॉवर में रूप में छाये रहे। लेकिन चीन के आगे उनकी नहीं चलती। इसलिए चीन विरोधी कई बाते हमें पश्चिमी मीडिया से सुनाई देती है और हमारे देश का मीडिया उन्हें दोहराता है चाइना में दुनिया की सबसे बड़ी माने जाने वाली सोशल वेबसाइट, सर्च इंजन, चैट एप्लीकेशन प्रतिबंधित है, वहां का अपना सर्च इंजन है और सोशल साइट्स है। इसलिए चीन विरोधी कई बाते हमें पश्चिमी मीडिया से सुनाई देती है और हमारे देश का मीडिया उन्हें दोहराता है।  चीन विश्वशक्ति के रुप में विकसित हुआ है तो यह उस राष्ट्र की अथक परिश्रम और इच्छा शक्ति का नतीजा है।

हमें ध्यान रखना चाहिए चीन एक ऐसा मजबूत पडोसी देश है, जिसकी सीमाएं हमारे देश से कई जगहों से मिलती है।  विकास की दौड़ में चीन भारत से कई गुना आगे है, सामरिक और आर्थिक रूप में उससे प्रतिद्वंदिता कर हम अपनी उर्जा और अर्थव्यस्था का क्षय ही करेंगे।

अगर भारत – चीन के साथ सहयोग के लिए कदम बढ़ाये तो – चीन भी उसमे गर्मजोशी दिखाना चाहेगा, क्योकि वैश्विक रूप से शक्तिशाली देश चीन को अलग थलग करने की कोशिश में है और चीन भारत जैसे मजबूत देश से जरुर सहयोग चाहेगा।

हमारी कोशिश होनी चाहिए की अपने पडोसी के साथ प्रतिद्वंदिता की जगह – उससे सहयोगी के रूप में साथ लेकर आगे बढे, साथ मिलकर क्षेत्रीय अखंडता और शांति के चीन और भारत आपस में एक दुसरे को सहयोग कर सकें।

Chinese productsचीनी उत्पाद – ज्यादातर भारतीयों उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति के अनुसार पर एक अच्छा विकल्प है और कई भारतीय व्यापारी सस्ते Chinese समान का आयात कर अपना घर चलाते है, किसी देश से आयात कम करने का सबसे अच्छा तरीका है – उससे बेहतर उत्पाद बनाया जाए, ना की किसी अन्य देश से वहीँ चीजें अधिक मूल्य पर मंगाई जाये। वैसे भी वैश्विक ट्रेड समझोते से बढे होने कारण भारत – चीन के साथ अपने आयात – निर्यात को बंद नहीं सकता। हाँ कुछ सवेदनशील प्रोडक्ट्स पर प्रतिबन्ध लगा सकता है अथवा इमोर्ट ड्यूटी बड़ा सकता है।

मैंने कुछ वर्ष पूर्व जब पहली बार चीन की धरती में कदम रखा तो आशंकित था कि कैसे  ह्रदयहीन देश में जा रहा हूँ, – जहाँ मनुष्यों के साथ न जाने कैसा यातनाजनक व्यवहार किया जाता होगा, खैर वहां पंहुचा कुछ महीने रहा तो मालूम हुआ कि वहां के लोग भी उतने ही आतिथ्य सत्कार और गर्मजोशी से भरे है – जितने हमारे अपने लोग, उनका सहयोग और जिन्दादिली ने मेरा भ्रम और आशंकाए दूर कर दी. वो आई टी क्षेत्र में भारतियों की उपलब्धि और योग के राष्ट्र के रूप में भारतियों की प्रशंशा करते है।

मैं नहीं कह रहा हूँ कि – चाइना दूध का धुला है, वह तो कोई भी राष्ट्र नहीं होता. मैं किसी को अच्छे या बुरे राष्ट्र साबित नहीं कर रहा, बल्कि हमारे भारतीय संस्कार जो कहता Hangzhou South है ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ – पूर्व विश्व ही एक परिवार है। अपनी इसी सोच के कारण भारतीय – पूरी दुनिया में है सभी जगह एक परिवार की तरह रहते है।

जानकरी के आभाव कई भारतीय मानते है कि चीन के प्रोडक्ट घटिया है। वो लोग भी ऐसा कहते है को जो चाइना के चार शहरों के नाम बता पायेंगे, वहां के चार लोगो के नाम नहीं गिना पायेंगे – लेकिन चाइना की आलोचना में घंटो बाते कर लेंगे।

भारतीय व्यापारी जो उत्पाद आयात करते है वो अत्यंत सस्ते मूल्य के होते है, इसलिए उनकी क्वालिटी भी उसी के अनुसार होती है। आम Chinese अच्छी क्वालिटी के उत्पाद उपयोग में लाते है, और चाइना से यूरोप और अमेरिका को भी एक्सपोर्ट होता है, और उनके द्वारा भुगतान किये गए मूल्य के अनुसार उनकी क्वालिटी भी उच्च स्तरीय होती है।

चीन के साथ अच्छे सम्बन्ध से हमारे अन्य पड़ोसियों के साथ संबंधो को भी प्रभावित करेगा, साथ हमारे जीडीपी का पश्चिमी देशों से आयात होने वाले युद्धपोतो, फाइटर प्लेन, एवं आयुध सामग्री आदि पर होने वाला हमारा खर्च स्वदेशी तकनीक विकसित और उन्नत होने में खर्च होगा।

तनाव के समय सम्बन्ध सुधारने पर चर्चा नहीं की जा सकती है लेकिन शांति काल में यह तैयारी की जा सकती है।  हमारे आने वाली पीढ़ी के अच्छे भविष्य के लिए चीन के साथ अच्छे और सकारत्मक सम्बन्ध भारतियों के लिए महत्वपूर्ण हो सकते है. अच्छे समबन्ध होने पर चाइना और भारत को एक दुसरे से सीखने को बहुत कुछ है। भारत दुनिया में सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में विशेष उपलब्धि प्राप्त देश के रूप में जाना जाता है और चीन हार्डवेयर के क्षेत्र में।

और दोनों देशों का इतिहास बौधिक और सांस्कृतिक आदान – प्रदान का रहा है।



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