असोज और ये जीवन

by Bharat Bangari
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कुछेक दिनों में ‘असोज’ लग जायेगा। भारतीय ग्रामीण समाज में असोज का अलग ही स्थान है।

असोज ख़ाली एक महीना नहीं बल्कि अपने आप में एक पड़ाव है, जिसमें घास के लूटों से लेकर, मकान की मरम्मत, बेटी की शादी, जाड़ों के लिए स्वेटर, बडियाँ, गौहत, भट, मास, झुंगर, मडुआ, चैंस का इंतेजाम सब करना होता है। भैंस, गाय, बकरी सबका इंतेजाम असोज से शुरू

सारे त्योहारों की प्लानिंग, और लगभग एक शुरुआत पूरे साल की, या ये कहें कि पूरा साल कैसा रहेगा किसी परिवार का, ये आप उस परिवार से ये पूछ के कह सकते हो ‘कैसा चल रहा है असोज?’
देश के अलग-अलग हिस्सों में असोज का लगभग इतना ही बड़ा महत्व है जितना पहाड़ों में; क्यूँकि बरसात पे निर्भर खेती और उस पे निर्भर देश में असोज का काम सबके मन में उम्मीदें भर देता है। हाड़ तोड़ मेहनत के बाद, रामलीला में फ़ुर्सत से नाटक देखना, फिर दिवाली का त्योहार और फिर सर्दियों में घाम सेकना और और ऐसे ही क्रमशः जीवन चलता जाता है।

पता नहीं कैसे और क्यूँ , लेकिन अब, जब भी असोज की सोचता हूँ, मन थोड़ा उदास हो जाता है। शायद अब मायने धुलने से लगे हैं, हर चीज़ के, बदलने लगी है हर चीज़ की अहमियत।

साल में अब सारे महीने ज़ेठ जैसे हो गए हैं और सारे इंसानी रिश्ते पूश जैसे!


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