कमरे के अदंर से ज़ोर ज़ोर से आवाजें आ रही थी…
“जिंदगी को मजाक समझा है क्या …जिंदगी ने भी तुम्हारे बारे में ऐसा ही समझ लिया ना, तो उसके बाद जो होगा, मेरे हिसाब से उसे ही कहते होंगे लंका लगना।“
रमन के बड़े भईया उसे समझाते हुए ये कहा, और यही बात उसे लग गयी, और रमन ने जिंदगी में सीरियस होना शुरू कर दिया।
आवारागर्दी जो पहले दिन भर हुआ करती थी, वो अब शाम को आधा घंटा ही रह गयी। वो अब अपने करियर को ले कर गंभीर रहने लगा और सिविल सर्विसेज की तैयारी करने लगा। सिविल सर्विसेज की इसलिए, क्यूंकि उसने सुन रखा था कि “चार चाहिए तो चालीस की और देखो”।
आज पुरे 5 साल हो गए है उस बात को (जिंदगी को मज़ाक वाली बात को)।
आज वो एक प्राइवेट स्कूल में अध्यापक है, और बच्चों को “मेहनत करके सफलता मिलती है” ये सिखाता है।
डिस्क्लेमर : कृपया इस लेख को व्यंग के रूप में ही लें, seriously नहीं।
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